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आओ इस प्रकृति को हम बचाए [कविता]- रचना सागर

आओ इस प्रकृति को हम बचाए [कविता]- रचना सागर


सूरज का उगना सिखलाए
रोज नई शुरूआत कर जाए
ये विशाल पर्वत
हमें आसमान छूने की राह बताए
ये बृक्ष की तनी भुजाए
हर पल आगे बढ्ने को कह जाए
ये दिवार पर चिपकी छिपकली
समस्या मे स्थिर रहने को सिखाती
ये प्रकृति की छोटी छोटी चिंटियाँ
पूरे समय व्यस्त रहने को कहती
इन पंक्षियो का कोलाहल
हमेशा चहकते रहने का सन्केत दे जाए
अंकुरित बीज को तो देखो
क्षण-क्षण परिवर्तन में मुस्कुराने को कहता
मोर के सुंदर पंखो को तो देखो
मानो जीवन का हर रंग हो समाया
नदियो की धारा कह जाती
पथ जैसा भी हो आगे बढना है
ये समय हमें सिखलाता
ये आज जो है, कल नही मिल पाता
कितनी खुबसूरती से प्रभु ने
ये प्रकृति हमे सदा सीख देने को रची
आओ इस प्रकृति को हम बचाए
आओ इस प्रकृति को हम बचाए


ये जाना [कविता]: रचना सागर

 


ये  जाना 

मेरी किस्मत भी मुझे 

अजब  मुंह चिढ़ाती है 

पास दिखती- सी मंजिल को

ओझल-सी कर जाती है 

मैंने  सुना है 

लोगों को

 अक्सर, ये  कहते 

 हर कामयाब पुरुष के

 पीछे 

औरत का साथ होता है

पर 

मैंने ये  जाना (अब तक)

 हर कामयाब औरतों के 

पीछे कोई पुरुष छिपा होता है

 बहुत कम होते है वो लोग

 जो समर्पण मे सच्चा विश्वास रखते हैं

 नहीं तो

 हर कोई यहां फायदा उठाने को बैठा है

 आईना हर घर में है फिर भी 

खुद से नजर चुराए बैठा हैं

मेरी किस्मत भी मुझे 

अजब  मुंह चिढ़ाती है 

पास दिखती- सी मंजिल को

ओझल-सी कर जाती है 


संभाल लेना हमे [कविता]: रचना सागर


आज का ये समय जहाँ एक तरफ तो कुछ भी संभव है तो वही आज के हालात मे दवाईयाँ भी बेअसर है ऐसे में बस जरूरत है हमे सच्चे दिल से प्रार्थना करने की दुआ करने की ...... इसी भावना से जुड़ी मेरी ये कविता ...... जिसका शीर्षक है . . . . . . .....संभाल लेना हमे

                                           संभाल लेना हमे  [कविता]: रचना सागर 



ए खुदा हम तेरे बंदे है
तू ही हमें जाने है
और जीने का सलीका नहीं आता हमें
सलीका सीखा दे जीने का हमें
ए खुदा झुक कर हमें जीना नहीं आता
और जो तन जाए जमाना रूठ जाता है
चुप रहना मेरी फितरत नहीं
और जो बोला नाम लड़ाकू रख दिया
ए खुदा हमने संस्कार बांटे है
संस्कार ही बटोरे है
और जरा हँस क्या लिया
वो तो संस्कार पर ही ऊंगली
ए खुदा हम तेरे बंदे है…….
ए खुदा छोड़ दिया हमने सुनने सुनाने
का सिलसिला
और जो सुनने बैठे तो सुन न पाएँगे
ए खुदा हम तो दुआ और सलाम चलाते है
और प्रणाम को नमस्कार और नमस्ते करते है
वो तो इसको भी हाय-हाय बना कर छोडा है
ए खुदा हम तेरे बंदे है….
ए खुदा चमचों को चमचा ही रहने दे
और जो मजा खाने में ऊगलियाँ देती है
वो चमचों मे कहां, वो चमचों मे कहा..
ए खुदा हम तो चोटियों से भी
तहज़ीब सीख जाते है
और वो तो तहजीब पे तोहमत लगा जाते है
ए खुदा हम तेरे बंदे है….
ए खुदा हम तो तमीज़ की कमीज़
बनाकर दिन रात पहना करते है
और वो तो बस बदतमीजी का चोला
पहना गए हमें
ए खुदा हमने हाई एजुकेशन नही पाया
बस माँ – बाप से कुछ सीखा है
आज तो बस बच्चों में तू बसता है
और उन्ही को मेरा सज़दा है
उन्ही को मेरा सज़दा है...
ए खुदा आखिर मे बस ये दुआ करती हूँ 
रखना ईमान व असमत के साथ हमें
परवाह करती हूँ सबकी
बस संभाले रखना हमे
ए खुदा हम तेरे बंदे है......



राह दिखा दे [कविता]: रचना सागर



 


आज के इस भयावह समय मे इंसान कुछ भी कहने का लिया शब्दहीन हो गया है.....

राह दिखा दे [कविता]: रचना सागर 



ये भी सहूँ वो भी सहूँ
कोई तो दर्द की दवा बता दे
सहने का सिलसिला थाम दे
दिखती है इक रौशनी
उस रौशनी की राह दिखा दे
जिंदा है इंसान अब भी
जिंदा रहने का एहसास करा दे
झूठ के बादल को हटा के
सच का एक सूरज तू उगा दे



इंतजार [कविता]: रचना सागर


 


जब कभी भी हमारे माता पिता को हमारी आवश्यकता हो तो उस समय हमें उनके लिए जरूर आगे आकर उनका दामन थामना चाहिए । वे हमारी नींव हैं उनके बिना हमारा क्या अस्तित्व ... इसी भावना से जुड़ी मेरी ये कविता ...... जिसका शीर्षक है . . . . . . इंतजार

इंतजार [कविता]: रचना सागर 



यूँ तो आपको मैं इक पल भी
भूली न थी
पर कभी -कभी आपके पास
आपकी बाँहो में सिमटने
 का दिल करता है
कुछ कहने कुछ सुनने को 
जी करता है    
जो साथ होते  है वो 
इस विरह की आग को क्या जाने 
पूछो उससे जो साथ रहकर
जुदा होते है
पूछो हम जैसों से जो
 फर्ज के नाम पर बार बार
जुदा होते है

सब्र का फल मीठा होता है 
ये सोच कर खुद को तसल्ली देते हैं
कभी भोगोये होगे हमारे माता पिता अपने कपड़े को
हमारे तन को सुखा रखने के लिए
कभी स्वयं को धूप मे रख
हमे छाया दी होगी
उनको आज जब हमारी जरूरत है
तो दूँगी कदम पर साथ उनका
फिर चाहे गुजर जाये पूरी जिन्दगी
इंतजार मे ....
मिलन की आस में...



एक माँ की सच्चाई ...[बाल कविता]: रचना सागर





माँ  एक ऐसा शब्द जो अपने  आप में सम्पूर्ण  है । पर जाने अनजाने हम उसकी गरिमा को ठेस पहुंचा देते हैं । उसका दिल दुखा देते हैं । पर फिर भी वो अपने बच्चों के लिए अच्छा ही चाहती है। ऐसा सिर्फ एक माँ ही करती है माँ .."एक माँ की सच्चाई ... " 

एक माँ की सच्चाई ...[बाल कविता]: रचना सागर 


मैंने देखा है 
माँ को प्‍यार से मुझे सहलाते हुए
दुनिया से मुझ को छुपाते हुए
उदास होकर भी 
मेरे लिए मुस्कुराते हुए
मैंने देखा है
माँ को स्वयं पर गुस्सा करते हुए
अनकही सी 
आँखों से सब कुछ कहते हुए
न चाहकर भी डांट लगाते हुए
दुनिया के पहलू समझाते हुए
मैंने देखा है
माँ को खुद का श्रृंगार करते हुए
मेरी खुशी में खुश
मेरे गम में आँसू बहाते हुए
मैं समझ न पाई ... .
न पहचान पाई :
उस माँ की कहानी 
 माँ की जुबानी
जब आज मैं  स्वयं माँ  बनी
समझ पाई जान पाई 
माँ के पहलू को पर..
मैं आज भी जुबा से बयान
न कर पाई ... .
एक माँ की सच्चाई...


आजादी का पैमाना [कविता]: रचना सागर

 


जब बात एक औरत की पाबंदी और उसे आजादी देने की आती है तो घूमना, खाना ,उठना, बैठना, पढ़ना ये सब उसकी आजादी के पैमाने गिनाए जाते हैं । इसी संदर्भ में पेश है मेरी नई कविता ...

आजादी का पैमाना [कविता]: रचना सागर 



मैं चिड़िया होकर भी
पंख फड़फड़ाने से
कतराती रही
यहां तो अंडे भी चोच
मार जाते रहे
जो चुपचाप सुनती रहूं
संस्कारी कहीं जाऊँ
जो दिल का कह दूं
Attitude वाली नज़र आने लगूँ
बात तब भी वही थी
बात अब भी वही है
बस फर्क यह आ गया
दिन को दिन और रात को रात
कह दिया
खामोश थी
पर जुबान तो तब भी थी
सही - गलत पर चुप रही
पर पहचान तो तब भी थी
मैं चिड़िया होकर भी
पंख फड़फड़ाने से
कतराती रही
यहां तो अंडे भी चोच
मार जाते रहे....



एक खामोशी भरा रिश्ता [कविता]: रचना सागर

 




आज के इस समय में हर इंसान से हमारा कोई ना कोई रिश्ता जुड़  ही जाता है कुछ  मीठे अनुभव दे जाते हैं तो कुछ कड़वी  सीख...इसी संदर्भ में पेश है मेरी नई कविता ...

एक खामोशी भरा रिश्ता [कविता]: रचना सागर 



रिश्ता है हमारे  बीच दर्द का
जहाँ फुर्सत नहीं एक पल गँवाने का
मैंने हर पल तुम्हें जिया है
जिंदा रखा है अपने एहसासों में
अपनी हर सांसों में
तू खामोश रहता था
मुझसे दूर रहता था
मैं महसूस करती थी
मेरी तन्हाई को, तेरी सादगी को
तू जाने को चला गया
एक रिश्ता जोड़ गया
दर्द मैंने दिए थे तुझे
उस दर्द को मेरे लिए छोड़ गया
हर दर्द को पी जाऊँगी
हर ज़ख्म को सह जाऊंगी
तू खुश रहे हमेशा
यही कामना कर जाऊँगीी



चंद्रशेखर बनूंगा मैं [बाल कविता]: रचना सागर



मेरे बेटे की मांग पर यह कविता उस वीर के नाम जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हुए अंग्रेजों में एक ख़ौफ़ पैदा कर आजादी की लड़ाई में एक जान फूंक दी। .... पेश है मेरी नई कविता "चंद्रशेखर बनूंगा मैं " 

चंद्रशेखर बनूंगा मैं [बाल कविता]: रचना सागर 


माँ मुझ को गुलेल दिला दो
चंद्रशेखर बनूंगा मैं।

सत्य राह पर चलूंगा मैं
सबसे आगे रहूँगा मैं।

हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
यह अपने है भाई- भाई ।
माँ मुझ को गुलेल दिला दो
चंद्रशेखर बनूंगा मैं।

भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु
यह थे कल के आजाद सिपाही।

आज का सैनिक बनूंगा मैं
भारत माँ की सेवा करुंगा मैं ।

माँ मुझ को गुलेल दिला दो
चंद्रशेखर बनूंगा मैं।


मेरे सपनों का भारत [बाल कविता]: रचना सागर


आज हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है की हमें हर साल 26 जनवरी को गणतन्त्र  दिवस मनाने का मौका मिलता है| हर साल की तरह इस साल भी सभी को इस दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाए व इस दिवस पर पेश है मेरे नई बाल कविता "मेरे सपनों का भारत

  

मेरे सपनों का भारत [बाल कविता]: रचना सागर 


मेरे भारत में ना कोई भुखमरी से मरे
हर जवान काम मेहनत से करें

ना किसी हिंदुस्तानी का मन बिके
यहाँ सभी अच्छे गुण ही सीखेँ

यहां पर ना हो भ्रष्टाचार का नामोनिशान
प्रगति का पथ सीखें.... यहां पर हर इंसान

हर सैनिक करें दुश्मनों को लहूलुहानन
न करें अपनी जान कुर्बान

गरीबी व अशिक्षा से मिलें इसे छुटकारा
चमके हर बालक बन एक सितारा

यहाँ कभी ना बैठे कोई युवक बेकार
यहाँ पर हो नौकरियों की भरमार

मेरा भारत बन जाए पृथ्वी का गहना
इसकी उन्नति का क्या कहना

बढ़ती रहेंगी इस तिरंगे की शान
सारे जग से प्यारा मेरा हिंदुस्तान


पर्यावरण बचाती मैना [बाल कविता]: रचना सागर





हमारे घर आंगन मे...हमारे रोजमर्रा के जीवन में पर्यावरण को बचाने मे सबसे बड़ा  योगदान इन  चिड़ियों का है ..इनके बिना हमारा जीवन परिवेश अधूरा है ..... पेश है मेरी नई कविता "मैंना " 

पर्यावरण बचाती मैना [बाल कविता]: रचना सागर 


रोज सवेरे आती मैना, 
मेरे मन को भाती मैना, 
बचा खुचा भोजन खाकर, 
पर्यावरण बचाती मैना।

देखो तो कितनी सुंदर है, 
भूरा पीला अनमोल रंग है, 
शान से गर्दन ऊपर करती, 
फिर मटक- मटक के चलती मैना ।

खुशी का राग सुनाती मैना, 
रोज सवेरे आती मैना,
मेरे मन को भाती मैना ।

जिस घर आंगन बसती मैना, 
प्यार की खुशबू फैलाती मैना ।
डाल डाल फिरती है मैना, 
सबके चेहरे पर मुस्कान भरती मैना ।

रोज सवेरे आती मैना, 
मेरे मन को भाती मैना ।
वातावरण खुशहाल बनाएं हम भी, 
मैना जैसे बन, सब के मन को भाए हम भी ।
पर्यावरण बचाएं हम भी ।

खिचड़ी [बाल कविता]: रचना सागर



उत्तरी भारत के हिंदु साल की शुरूआत का पहला त्योहार है.... इस पर्व को बड़े बूढ़ो के आशीर्वाद के साथ शुरूआत करते  है..... इसे उत्तरी भारत मे मकर संक्रांती व बिहार उत्तर प्रदेश आदि मे खिचड़ी के नाम से जानते है ..... पेश है मेरी नई कविता "खिचड़ी " 

खिचड़ी [बाल कविता]: रचना सागर 


मकर संक्रांति से
नववर्ष की शुरुआत करते हैं
संग दही चूड़ा का
स्वाद चखते है
उस पर खिचड़ी के साथ
देसी घी का स्वाद खूब भाता है
बचपन के खाने की
याद दिलाता है
पतंग की रंगबिरंगी
जी को ललचाती है
फिर बच्चा बन पेंच लड़ाने को
उकसाती है
गुड़ सी मिठास
हर रिश्ते मे घोलती संक्रांती
दान-पुण्य और सत्कर्म का
पाठ सिखाती है मकर संक्रांती
साझा करके सब खाओ पियो
संग मिलकर मजे किया करो
खिचड़ी के नाम से भी
जानते है मकर संक्रांति ।

लोहड़ी आई बधाइयां छाई [बाल कविता]: रचना सागर




साल की शुरूआत का पहला त्योहार है.... इसको बड़े बूढ़ो के आशीर्वाद के साथ..... नए फसल होने की खुशी मे मनाया जाता है...... पेश है मेरी नई कविता लोहड़ी आई बधाइयां छाई 

लोहड़ी आई बधाइयां छाई [बाल कविता]: रचना सागर 


लोहड़ी आई बधाइयां छाई 
चारों ओर से गुड़ और तिल की खुशबू आई
साथ मूंगफली और गजक के महफिल में रौनक आई
जब साथ मिल बैठे सब भाई भाई
इस मीठे की महक से बच्चों के चेहरे पर मुस्कान खिल खिलाई
देखकर इनकी मासूमियत गुरुओं की गुरुवाणी याद आई
तुम जितने भी बड़े हो जाओ
पर त्योहार का मजा तो बच्चा बन के उठाओ
झूमो नाचो कि सारा गम भूलाओ
वो सब कुछ अच्छा करता है
यह खुद को विश्वास दिलाओ
हैप्पी लोहड़ी .......

लॉकडाउन की प्रकृति [बाल कविता]- रचना सागर


बच्चों की बातें मम्मी की कलम द्वारा 
इस लॉकडाउन में ,
इंसान लॉक हो गए ,
प्रकृति स्वतंत्र हो गई।
नदियां खिल- खिलाई,
फूल मुस्कुराए ।

इस लॉकडाउन में,
मैं कोयल की,
कू कू सुन पाया ।
कू कू कर उसको चिढ़ाया ,
बड़ा मजा आया।

इस लॉकडाउन में,
मैं चिड़िया का
घोंसला देख पाया।
दाना चुगते वे प्यार से
ये करीब से देख पाया।

इस लॉकडाउन में,
मैंने दादू- दादी मां से की
ढेर सारी बातें
किस्से -कहानियां और
साफ -सफाई की बातें।

इस लॉकडाउन में,
मैंने दो- दो , दो- दो
इंद्रधनुष साथ में देखा।
वादियों का सुंदर रंग देखा
अद्भुत सूर्य ग्रहण देखा
विज्ञान और ज्योतिष का
अजब मेल भी देखा।

इस लॉकडाउन में,
मैंने की ऑनलाइन पढ़ाई,
मम्मी के मोबाइल पर हक भी जमाई।
अंग्रेजी, हिंदी ,गणित, विज्ञान की
घर पर ही की पढ़ाई।

इस लॉकडाउन में
मैंने रंग- बिरंगी पकवान खाएं
गुलाब- जामुन ,रसगुल्ला भी
मम्मी ने खूब बनाए
गरमा- गरम जलेबी का
स्वाद खूब भाया।

और, इस लॉकडाउन में,
इंसान लॉक हो गया
पर्यावरण खुद स्वच्छ हो गया
करो ईश्वर का धन्यवाद,
हर रोज, हर बार, बार- बार
इस लॉकडाउन मे ।

बेवजह का बवाल [यात्रा संस्मरण]- रचना सागर


मैंने कई बार रेलगाड़ी की यात्रा की है, आशा है, आप सब ने भी कभी ना कभी रेलगाड़ी में यात्रा की होगी| वह स्टेशन की चहल-पहल…… वो रेल की आवाज….. इन सब के बीच.. एक चीज है जो होती तो स्थिर है पर ... हमारी नज़र एक बार तो उस पर जाता ही है.... हां वह है ट्रेन के कोने मे लटकी वह चेन जो शांति से वही होती है... पर उसे देखकर एक जिज्ञासा होती है कि क्या यह चेन...इस भारी भरकम रेलगाड़ी को रोक सकता है....| क्या हो... अगर मैं इस चेन को एक बार खींच कर देखती.... जी हां बच्चे ही नहीं बल्कि बड़ों को भी यह काफी कैसेट उत्कंठित लगती है...| सभी की तरह मेरे मन में भी यह विचार आते थे पर उस रेल यात्रा के बाद यह उलझन... यह उत्सुकता सब समाप्त हो गई...|

गर्मियों के दिन थे, मैं छूटियाँ मनाने अपने परिवार के साथ उज्जैन गई थी| बड़ा मजा आया था । पर हम सब जब वहां से लौट रहे थे, रेल गाड़ी में बैठे ... ट्रेन खुलने मे अभी वक्त था और गर्मी भी बहुत थी। हमारे पास पानी ख़त्म हो चला था ... तो मेरे पति पानी भरने के लिए नीचे उतरे ....साथ में मेरा बेटा भी हो चला| मै और मेरी बेटी आराम से बैठकर पानी का इंतजार कर ही रहे थे कि अचानक रेलगाड़ी की सीटी की आवाज़ सुनाई दी और हमने सोचा किसी और रेलगाड़ी की सीटी की आवाज है..... पल भर में ही हमारी ट्रेन चलने लगी| हम घबरा गए मै भागकर गेट पर गई और बेटे को आवाज देने लगी .....उस भागम भाग में ..मेरी बेटी उसी कोच में चुपचाप खड़ी थी ...उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए उस वक्त किसी ने पीछे से आवाज दी ...." अरे कोई चेन पुलिंग कर दो "..... मेरी बेटी ने कुछ सोचे बिना चेन खींची.... रेलगाड़ी एका- एक रुक गई ....| मै तुरंत नीचे उतरी और चारों और अपने पति और बेटे को आवाज़ देने लगी| क्षण भर भी नहीं बीते थे कि वहां तीन-चार पुलिस वाले आ गए और चैन पुलिंग किसने की पुछने गया ...........? मैंने धीमे स्वर मे जवाब दिया " चेन पुलिंग मैंने किया है ".... गुस्से मे वे चेन पुलिंग का कारण पुछने लगे ? ....मै उन्हें बताने लगी कि मेरा बेटा स्टेशन पर ही छूट गया ...... तभी मेरे पति और बेटे आ गए जो की किसी और बौगी मे चढ़ गए थे और पूछने लगे कि क्या हुआ? पुलिस वाले ने गुस्से से कहा..." अरे जब पापा बच्चे के साथ थे.. तो आखिर चेन पुल करने की क्या जरूरत पड़ गई। " ऐसे करके वह मुझे डराने लगे कि....अब तो पुलिस स्टेशन में केस होगा ...., आपको यह ट्रेन छोड़कर थाने चलना होगा आदि.....कह कर डराने लगे ........... । यह सब देख शीट पर बैठी मेरी बेटी चुपचाप सोच रही थी..... उसे पता ही नहीं चल रहा था कि आगे क्या होगा..... ..... क्या माँ और पापा को पुलिस पकड़ कर ले जाएगी ?... यह बहस कोई 5- 10 मिनट हुई होगी , मेरे पति ने कहा हम फाइंड देने के लिए तैयार तो हैं पर वह पुलिस वाला तो सुन ही नहीं रहा था । बेवजह की बवाल को बढ़ता देख कर । अंत में मेरे पति ने ₹2000 का फाईन विनती करते हुए दिया और सब ठीक हो गया। पर रात में, मैं उसी बारे में सोचती रही उस रात को ऊपर सीट पर सोने पहुंची तो अपनी पुरानी आदत की तरह पास में लगे उस चेन पुलिग वाले बोर्ड को देखने और पढ़ने लगी| वैसे तो उसको मैं अपनी हर रेल यात्रा में पढ़ती थी....पर उस दिन लगा कि मैंने उसे कभी पढ़ा ही नहीं था | साफ-साफ अक्षरों में लिखा था " चेन पुलिंग का जुर्माना ₹2000"| हम सब जानते थे पर फिर भी पुलिस वाले हमें डरा रहे थे और हम उसके सामने गिड़गिड़ा रहे थे| उस वक्त लगा मानो हम पढ़े लिखे अनपढ़ थे । उस दिन के बाद ना मैंने उस बोर्ड को फिर पढ़ा और ना ही उस यात्रा को कभी भूल पाई और मैंने सोचा कि यह घटना मै आप सभी के साथ साझा करूँ । 

इस प्रकार मैं अपनी अंकल लगाए बगैर पुलिस वालों के सामने रिक्वेस्ट करके ₹2000 दिए । 

समस्या में भी घबराना नहीं चाहिए और अपनी सूझबूझ से काम लेनी चाहिए । 


बताओ जरा …. तो जाने [बचपन से ]- रचना सागर




1.सफेद मुर्गी हरी पूंछ,
तुझे ना आए तो लाले से पूछ ।


2.छोटा-मोटा राजकुमार
कपड़ा पहने एक हजार।


3.पगड़ी में भी गगरी में भी
और तुम्हारी नगरी में भी
कच्चा खाओ तो पक्का खाओ
शीश मे मेरा तेल लगाओ।


4.मैं हरी मेरे बच्चे काले
मुझको छोड़ मेरे बच्चों को खा ले ।


5.एक नाम जानकी का है
एक नाम नतीजा
एक फल ऐसा है
जिसको खाए चाचा भतीजा ।

6.वह कौन- सा ' कान' है जिसमें मनुष्य रहता है?

7.वह कौन- सा 'यार' है जो सबको नुकसान पहुंचाता है ?


8.पानी जैसा मेरा रूप
सुखा ना पाए मुझको धूप ।



जवाब हाजिर है ........
.
.
1.मूली, 2.प्याज, 3. नारियल, 4. इलायची, 5. सीताफल, 6. मकान, 7. हथियार, 8. पसीना .
.
.



नव वर्ष का सवेरा 2021 [बाल कविता]- रचना सागर





रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।
नव वर्ष का सवेरा 2021 [बाल कविता]- रचना सागर


इस बार
प्रण करें और श्रम करें
जीवन में न कोई भ्रम रहे
रूके ना और कर्म करें

सुने तो सबकी 
पर इस बार कर जाएं मन की
सत्य झूठ को दूसरे से पहले
स्वयं को बताएं

रिश्ते निभाए दिल से
रिश्तों  में मिठास लाएं
कुछ भी ना छुपाए
पीछे कहने से अच्छा
सामने से आकर बताएं

महापुरुषों की संतान हैं हम
तुच्छ कार्य हमें शोभा नहीं देते
बेकार की बातों मे हम उलझा नही करते
2020 वर्ष आया
बहुत कुछ पाया, न जाने क्या-क्या खोया.....
जाना अकेले जीवन नहीं है
अपनों के प्यार में जिंदगी के रंग हैं
कुछ उलझने आई , हौले से सबक सिखाई है
यह वक्त भी बीत गया है

नव वर्ष 2021 का सवेरा द्वार पर आया है
प्रभु का धन्यवाद कर ,अपने कार्य का आगाज़ कर
सोच में सकारात्मकता लाकर , विजय का बिगुल बजा कर
माथे पर तिलक लगाकर, मंदिर में शीश झुका कर
नए वर्ष का आरंभ कर ,तनिक भी ना विलंब कर
शुरुआत कर ....कल नहीं ....आज कर

नव वर्ष 2021 का सवेरा द्वार पर आया है
प्रभु का धन्यवाद कर.... अपने काम का आरंभ कर
बड़ों का सदा सम्मान कर ,प्यार कर
नूतन वर्ष पर दूसरों से उम्मीद लगाने से पहले
अपने अंदर विश्वास का दंभ भर
आरंभ कर........
.



आया है क्रिसमस, हम सब मनाएं क्रिसम [बाल कविता]- रचना सागर



रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।
आया है क्रिसमस, हम सब मनाएं क्रिसम [बाल कविता]- रचना सागर


आया है क्रिसमस, हम सब मनाएं क्रिसमस
Sing we “merry Christmas….. merry Christmas….”
भगवान से प्रार्थना करें
वे सब अच्छा करे
इस अंधकार को दूर कर
रौशन जहाँ करें।
Sing we “merry Christmas….. merry Christmas….”

विश्वास का candle जगमगाएं
Peace का cake बना बांटें
मस्ती में सब मिलकर नाचें
बुरा वक्त पल भर में भागे
आया है क्रिसमस, हम सब मनाए क्रिसमस
Sing we “merry Christmas….. merry Christmas….”

सब मानव एक समान हो
कहीं न भेद भाव हो
अज्ञानता दूर हो ज्ञान का प्रकाश हो
इस क्रिसमस सैंटा खुशिओं का उपहार दो
सैंटा आते है खुशिया लाते है
Colourful gifts हमें दे जाते हैi
I hope नये साल में smile आये
बच्चे बाहर आकर खुशियाँ मनाएं
नये साल से पहले सैंटा सारी problem ले जाए
आया है क्रिसमस, हम सब.......



क्या औरत कभी कामयाब हो पाती है...? [कविता]- रचना सागर





रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।
क्या औरत कभी कामयाब हो पाती है...? [कविता]- रचना सागर


जब भी कामयाबी की ओर वो कदम बढ़ाती है
कभी बर्तन ..... कभी बच्चे तो
कभी छुरी, चाकू से वो टकराती है
मंजिल को देखने से पहले वो
बच्चों के सपनों पर नजर दौड़ाती है
भले की वो सपने उसके नहीं हैं
फिर भी वो पूरा ज़ोर लगाती है

जब भी कामयाबी की ओर वो कदम बढ़ाती है
कभी बच्चो की, तो कभी घर की सुरक्षा से वो टकराती है
जरूरतों की लिस्ट को वह फ्रिज पर टंगी पाती है
लौंड्री बास्केट घर के कोने से उसे बुलाती है
प्रेस की तार से वो खुद को ज़ुदा नहीं कर पाती है

जब भी कामयाबी की ओर वो कदम बढ़ाती है
दो पैसों के लिए वो खुद को मोहताज पाती है
बजत की गुल्लक से वो नजरें चुराती है
इच्छाओ के पंख को वो खोल नहीं पाती है
जो बच्चों के रोज़ नाज-नख़रे उठाती है
आज वो job पा भी जाती है
तो समाज उसपर ऊंगली उठाती है

लाख मशक्कतों के बावजूद.....
जब भी कामयाबी की ओर वो कदम बढ़ाती है
तो भी क्या औरत कभी कामयाब हो पाती है ...????


संवेदना [कविता]- रचना सागर





रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।
आज हम इंसान अपने जीवन के भागम भाग में इतने व्यस्त हो गए हैं कि अपनी अंतरात्मा की आवाज को ही नहीं सुन पाते हैं ।
संवेदना [कविता]- रचना सागर


आज की इस भागमभाग में
दुनिया के समंदर में
वेदनाओं के भंवर में
संवेदनाओं के लिए वक्त कहां
आज संवेदना उठती है मन में
बसती है दिल में
और दिमाग में सिमट जाती है
जिस तेजी से हम बढ़ रहे हैं
खुद ही खुद को छल रहे हैं
एक दिन ऐसा भी आएगा जब
हमसे पूछा जाएगा
कि बताओ संवेदना कौन है
किसी की बहन है, बीवी है
नानी है, सहेली है
यह कैसी पहेली है?
आखिर कौन है संवेदना?
रिश्ता क्या है इससे मेरा
तब हम ना बता पाएंगे
कि संवेदना दिल की आवाज है
इंसान की इंसानियत है
जानवर और हमारे बीच का फर्क है
मां की ममता और बाप के दिल का प्यार है
छूने से छू लेने का एहसास है संवेदना
और कलम हाथ में ले कर
यह साधिकार कथन है कि
संवेदना पहचान है साहित्य की भी
इसलिए संवेदित हूं
कि खो ना जाए कहीं
यह भावनाएं ..........
यह संवेदनाएं ..........