जब बात एक औरत की पाबंदी और उसे आजादी देने की आती है तो घूमना, खाना ,उठना, बैठना, पढ़ना ये सब उसकी आजादी के पैमाने गिनाए जाते हैं । इसी संदर्भ में पेश है मेरी नई कविता ... आजादी का पैमाना
[कविता]: रचना सागर
मैं चिड़िया होकर भी
पंख फड़फड़ाने से
कतराती रही
यहां तो अंडे भी चोच
मार जाते रहे
जो चुपचाप...
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आज के इस समय में हर इंसान से हमारा कोई ना कोई रिश्ता जुड़ ही जाता है कुछ मीठे अनुभव दे जाते हैं तो कुछ कड़वी सीख...इसी संदर्भ में पेश है मेरी नई कविता ... एक खामोशी भरा रिश्ता [कविता]: रचना सागर
रिश्ता है हमारे बीच दर्द का
जहाँ फुर्सत नहीं एक पल गँवाने का
मैंने हर पल तुम्हें...