अभी समय है...

आज उस वृक्ष को कटते देखा मैंने
जिसे रोपा था बूढी अम्मा ने
सींचा था अपने श्रम से, स्वेद से
पाला था बेटे की भांति
कल का नन्हा पादप
आज जब विशाल वृक्ष बना था
तो काट दिया अम्मा के अपने बेटे नें
मानो, एक भाई ने दुसरे भाई को काट दिया..

आज उस वृक्ष को कटते देखा मैंने
जिसे रोपा था बूढी अम्मा ने
वह वृक्ष उदास तो था
किंतु उसकी आँखों मे आँसू न थे
वो आज के मानव की कहानी कह रहे थे
उसे अफसोस नहीं कट जाने का/मिट जाने का
कि यही तो आज की दुनियाँ है हाँ
यहाँ माँ के दुध का कर्ज अदा नही होता
धरती माँ का हक़ अदा नही होता
जहाँ संग खेलते भाई-बहनों का संग नही होता
वहाँ एक अदना वृक्ष की क्या बिसात?
जाता हुआ वृक्ष धरती में बिबाईया बो गया
दरारे अपनी लिपि में
दे रही थी चेतावनी मानवता को
अभी समय है संभल जाओ..

- रचना सागर
27.12.2007

32 comments:

Aryan Raj said...

Its excellent, awesome...Lovely thinking and meaningful article....plz keep writing....thank you...god bless you....

योगेश समदर्शी said...

Bahur ache bhaav ka sangam .
badhai

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav said...

वाह रचना जी वाह.. बहुत दिनों बाद दर्शन हुये आपके..

बहुत ही सटीक दुर्दशा लिखी है आज के समाज की..
चेतावनी से चेत जायें लोग ऐसी उम्मीद है.

बहुत बहुत साधूवाद

mamta said...

शब्द और भाव दोनों ही बहुत गहरे है।
बेहतरीन रचना।

कथाकार said...

आज रचना सागर का रचना संसार देखा. खूब खूब बधाई सुंदर संयोजन के लिए. कविताएं मन की छू जाती हैं और उम्‍मीद जगाती हैं कि आने वाले वक्‍त में तुम्‍हारी सार्थक साझेदारी होगी.
ब्‍लाग के कलापक्ष को देख कर मेरा मन ललचा रहा है कि रचना को अपने दोनों ब्‍लागों के पासवर्ड दे दूं और कहूं. जरा इन सूखे और नीरस ब्‍लागों को भी संवार दो जरा.
पुनः बधाई
सूरज

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर रचना लिखी है अपने रचना जी .अच्छा लिखती है आप बहुत

शोभा said...

रचना जी
वृक्ष की वेदना के साथ-साथ आज की भौतिकवादी सोच का बहुत ही सुन्दर चित्रण है।

Anonymous said...

it's great yaaar

Puru said...

Really a nice thought and we pray to almighty GOD for your next lovely venture.

I along with my family appreciate your nice creativity and hope that your PEN will create a new height in terms of presenting thoughts.

Keep writing it will increase your PEN's worth.

Bye Take Care

Puru & Family

Rajesh Soni said...

rachna, good job....I think you should write more of it...you have the ability to pen your heart...keep it up !

Vinaykant Joshi said...

रचना जी, बहुत ही अच्छी कविता है,अन्तिम पंक्तियाँ कमाल की है |
नियमित रूप से लिखा कीजिये

vangmyapatrika said...

bahaut khoob

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।

कुश said...

बहुत ही सुंदर..

makrand said...

जाता हुआ वृक्ष धरती में बिबाईया बो गया
दरारे अपनी लिपि में
दे रही थी चेतावनी मानवता को
अभी समय है संभल जाओ..
well edited
exploring the true sense of reference
regards
makrand-bhagwat.blogspot.com

Anonymous said...

Hi, I am not a regular reader/writer.. But jus surfing net and saw HINDI YUGM.. Its very nice to see a gal from Bihar, chapra continued her writing .. and expressed the most ethical and innocent philosophy of middle class family .. Ur thoughts ..wat to say ..its honest ..

Ok sis .. am also frm Bihar.. continue ur writing skills .. cheers

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah..
badiya bhavbodh
likhen or khoob likhen

Girish Kumar Billore said...

your r looking my sister seemaa
my bleshing to seemaa
वहाँ एक अदना वृक्ष की क्या बिसात?
जाता हुआ वृक्ष धरती में बिबाईया बो गया
दरारे अपनी लिपि में
दे रही थी चेतावनी मानवता को
अभी समय है संभल जाओ..
"फ़िर भी कोई न समझेगा ये तय है "
अच्छी कविता के लिए आभारी हूँ

Vinay said...

अपने अनुरोध में मुझे भी शामिल कर और सभी से अनुरोध है कि साल में एक पेड़ तो कमस-कम लगायें।

Anonymous said...

बहुत सुंदर!
सारी कविता बार बार पढ़ने को मन करता है और अंतिम पंक्तियां के लिए तो उचित शब्द ढूंढना मुश्किल हो रहा है।

जाता हुआ वृक्ष धरती में बिबाईया बो गया
दरारे अपनी लिपि में
दे रही थी चेतावनी मानवता को
अभी समय है संभल जाओ..

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

बहुत प्रभावशाली रचना-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

निर्झर'नीर said...

gahre bhaav sundar abhivyakti..
kabil-e-tariif
mohak tasviireN

Unknown said...

दरारे अपनी लिपि में
दे रही थी चेतावनी मानवता को
अभी समय है संभल जाओ
wah
wah wah
bahut hi sunder
rachna ji aapki rachnayen padhi
aapke kavya jagat se mai bahut aalokit v aanndit hua......thanx for sharing........

Science Bloggers Association said...

सजग करती प्रेरक रचना है आपकी। बधाई।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Divya Narmada said...

रचना की रचना ने मोहा,

है सागर से भाव लिए.

'सलिल' न जाने निठुर मनुज क्यों,

नीरस भाव-अभाव लिए

Anonymous said...

बहुत सुंदर !!

सुरेश यादव said...

रचना जी आप अच्छा लिखती हैं क्यों कि आप मन के सहज भावों को व्यक्त करती हैं पेड़ की संवेदना आज की वेदना है बधाई.

Mrs. Sushma Kapoor said...

Rachnaji, Rachnaye rach rach ke puri nadiya banaye hein, bhagwan kare ki yeh nadiya hichkole khate khate sagar mein mil jaye re

रचना सागर said...

Thanks bro for lovely complement

रचना सागर said...

Bahut bahut dhanyavad

रचना सागर said...

Thanks for blessing