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मुस्कुराओ जी [कविता] -रचना सागर



सौ साल बाद आई कहर है

 यह महामारी नहीं सबक की लहर है

 अपनी ही धुन में हम  यू रम गए हैं

 आए क्या करने और क्या कर रहे हैं

 खुद ही खुद के गुलाम बन गए हैं

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 कभी किसी का मजाक मत उड़ाओ जी


 कहीं अम्फाल  तो कहीं तूफान है

 कहीं बाढ़ से लोग बेहाल है

 चारों तरफ डर और खौफ का माहौल है

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 प्रभु का धन्यवाद करते जाओ जी

 

संकट की घड़ी आई है

 नहीं कोई सुनवाई है

 प्रकृति ने भी बेरुखी दिखाई है

 हर तरफ बदहवासी छाई है

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 राम का नाम जपते जाओ जी


 ग्रहण लगा  सूर्य चांद पर है

 इनकी रोशनी   मधुआई है 

मंदिर मस्जिद गिरजाघर की राहे बंद है

चहू ओर संघर्ष की ये अजब द्वंद है 

फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 नित्य नित्य   सत्कर्म करते जाओ जी 


 नदिया झर झर  बहती जाती है

 प्रकृति सुंदर राग सुनाती है

 सब कुछ तो पहले जैसा है

 बस हम- तुम ,तुम -हम बदले कैसे  हैं

 हर हाल में खुश रहने की जिद में

 खुश रहना ही भूल गए हैं

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 पग पग पर    संभलते जाओ जी

 नारायण नारायण कहते जाओ जी

 सकारात्मकता फैलाओ जी

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी


इन्सान हो इंसान तुम[कविता]- रचना सागर


उसको क्या पता था

इंसान उसे भूल जाएगा

गुनाहों में पड़ के वो

क्या कर जायेगा

खाली हाथ आया था वो

गुनाहों संग जायेगा

लिया-दिया- सब किया

यही रह जाएगा

उसको क्या पता था...

हिंसा बस हिंसा है

तेरे और मेरे मन में

प्यार कहाँ है?

ढूढ़ो तो ढूढ़ो/जानो तुम

उसको क्या पता था...

मारो और काटो तुम

यही कर पाए हो

इंसान हो इंसान तुम

नहीं बन पाए हो

उसको क्या पता था...

नफरत है तेरे अन्दर नफरत फैलाएं हो

मज़हब के नाम पर घर लूट खांए हो

सोचो तो जरा सोचो तुम

क्या मुहम्मद बन पाएं हो?

उसके ही नाम पर लूट मचाए हो

इन्सान हो इंसान तुम नहीं बन पाए हो?

रचना सागर

29.06.2010

5:30 PM