सौ साल बाद आई कहर है यह महामारी नहीं सबक की लहर है अपनी ही धुन में हम यू रम गए हैं आए क्या करने और क्या कर रहे हैं खुद ही खुद के गुलाम बन गए हैं फिर भी आप मुस्कुराओ जी कभी किसी का मजाक मत उड़ाओ जी कहीं अम्फाल तो कहीं तूफान है कहीं बाढ़ से लोग बेहाल है चारों तरफ डर...
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