उसको क्या पता था
इंसान उसे भूल जाएगा
गुनाहों में पड़ के वो
क्या कर जायेगा
खाली हाथ आया था वो
गुनाहों संग जायेगा
लिया-दिया- सब किया
यही रह जाएगा
उसको क्या पता था...
हिंसा बस हिंसा है
तेरे और मेरे मन में
प्यार कहाँ है?
ढूढ़ो तो ढूढ़ो/जानो तुम
उसको क्या पता था...
मारो और काटो तुम
यही कर पाए हो
इंसान हो इंसान तुम
नहीं बन पाए हो
उसको क्या पता था...
नफरत है तेरे अन्दर नफरत फैलाएं हो
मज़हब के नाम पर घर लूट खांए हो
सोचो तो जरा सोचो तुम
क्या ‘मुहम्मद’ बन पाएं हो?
उसके ही नाम पर लूट मचाए हो
इन्सान हो इंसान तुम नहीं बन पाए हो?
रचना सागर
29.06.2010
5:30 PM