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सतर्क भारत हमारा गर्व [कविता ] - रचना सागर



आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे


अब तक  हम हर  वर्ष सतर्कता 

 पर चर्चा करते आए हैं

अपनी आकांक्षाओं के अधीन हो 

एक दूसरे पर उंगलियां उठाते आए हैं

 अपनी गलती को छोटा बताने को

 दूसरों की गलतियां  गिनाते आए हैं


  आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे



 जब जान लिया है विष कहां है?

फिर दौड़ भाग क्यों यहां वहां है

 यह बीमारी है शुगर बीपी जैसी

 जीवन भर साथ चलेगी और पीढी दर पीढ़ी बटेगी 


आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे



लक्ष्मी, दुर्गा, काली, चंडी की पूजा करते है

फिर रिश्वत पर हम क्यों पलते है 

काला धन को प्रभु की कृपा समझते है 

हर बात पर राजनीति करते है

औरत की आबरू हरने हो तत्पर रहते है


आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे



दस दस रुपये में बिकते ईमान है 

फिर भी हर कोई परेशान है

रोटी, रोटी- दाल की कमी नहीं है

पर गरज किसी की पूरी नही है


आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे


करते है गलती जलती है चिताएँ 

उठती है टीसें बहती है आशाएं

उस पे हम मोमबत्तियां जलाएं 

ये कहाँ की अराजकता है, ये कैसी बलाए


आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे


भद्दे चुटकुले और परिहास कर अपनी परंपरा नष्ट करते आए है

फिर बची  है जो सभ्यता उसका भी मान ना कर पाए हैं

गांधी, भगत, लक्ष्मीबाई का उदाहरण देते आए हैं 

फिर क्या है- फिर क्या है जो हमें स्तंभित कर उनका मान क्षीण कर  आए हैं 


इतिहास गवाह है कि जब- जब इंसानों ने कुछ करने की ठानी  है 

तो एक उदाहरण पेश कर डाला है 

तो चलिए अपने भविष्य के लिए कुछ कर जाएं

छोटी छोटी गलती को हम ना छुपाए 

देखें जो गलत तो आवाज उठाएं 

सूझ- बूझ और सावधानी अपनाएं 

बड़े और छोटे का भेद मिटाएं 

प्यार से सबको गले लगाएं 

धर्म जाति का भेद दूर कर 

इस बार शिक्षा, बुद्धि, विवेक और शुद्ध आचरण का दीप जलाएं 

बेटों को ज्ञान दें ताकि हर स्त्री को सम्मान दें 

बेटियां हर मां बाप के  गुलशन का गुल है 

सुरभि बन संसार में छा जाने दें 

इतना सुंदर तो है भारत का पौराणिक ज्ञान 

फिर क्यों है इनमें  (youth) इतना आक्रोश, अज्ञान, 

इन्हें बताएं भारत का दंभ है ,

भारत का गर्व हैं 

भारत किसी से कम नहीं है 

हम भारत हैं भारत हैं हम 

तो चलिए मित्रों आज अपने स्तर पर सतर्कता लाएं 

ताकि कल फिर से भारत में सतर्कता सप्ताह ना मनाया जाए

सतर्कता सप्ताह ना मनाया जाए 


रचना सागर

29.10.2020




मुस्कुराओ जी [कविता] -रचना सागर



सौ साल बाद आई कहर है

 यह महामारी नहीं सबक की लहर है

 अपनी ही धुन में हम  यू रम गए हैं

 आए क्या करने और क्या कर रहे हैं

 खुद ही खुद के गुलाम बन गए हैं

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 कभी किसी का मजाक मत उड़ाओ जी


 कहीं अम्फाल  तो कहीं तूफान है

 कहीं बाढ़ से लोग बेहाल है

 चारों तरफ डर और खौफ का माहौल है

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 प्रभु का धन्यवाद करते जाओ जी

 

संकट की घड़ी आई है

 नहीं कोई सुनवाई है

 प्रकृति ने भी बेरुखी दिखाई है

 हर तरफ बदहवासी छाई है

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 राम का नाम जपते जाओ जी


 ग्रहण लगा  सूर्य चांद पर है

 इनकी रोशनी   मधुआई है 

मंदिर मस्जिद गिरजाघर की राहे बंद है

चहू ओर संघर्ष की ये अजब द्वंद है 

फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 नित्य नित्य   सत्कर्म करते जाओ जी 


 नदिया झर झर  बहती जाती है

 प्रकृति सुंदर राग सुनाती है

 सब कुछ तो पहले जैसा है

 बस हम- तुम ,तुम -हम बदले कैसे  हैं

 हर हाल में खुश रहने की जिद में

 खुश रहना ही भूल गए हैं

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 पग पग पर    संभलते जाओ जी

 नारायण नारायण कहते जाओ जी

 सकारात्मकता फैलाओ जी

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी


इन्सान हो इंसान तुम[कविता]- रचना सागर


उसको क्या पता था

इंसान उसे भूल जाएगा

गुनाहों में पड़ के वो

क्या कर जायेगा

खाली हाथ आया था वो

गुनाहों संग जायेगा

लिया-दिया- सब किया

यही रह जाएगा

उसको क्या पता था...

हिंसा बस हिंसा है

तेरे और मेरे मन में

प्यार कहाँ है?

ढूढ़ो तो ढूढ़ो/जानो तुम

उसको क्या पता था...

मारो और काटो तुम

यही कर पाए हो

इंसान हो इंसान तुम

नहीं बन पाए हो

उसको क्या पता था...

नफरत है तेरे अन्दर नफरत फैलाएं हो

मज़हब के नाम पर घर लूट खांए हो

सोचो तो जरा सोचो तुम

क्या मुहम्मद बन पाएं हो?

उसके ही नाम पर लूट मचाए हो

इन्सान हो इंसान तुम नहीं बन पाए हो?

रचना सागर

29.06.2010

5:30 PM