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बेवजह का बवाल [यात्रा संस्मरण]- रचना सागर


मैंने कई बार रेलगाड़ी की यात्रा की है, आशा है, आप सब ने भी कभी ना कभी रेलगाड़ी में यात्रा की होगी| वह स्टेशन की चहल-पहल…… वो रेल की आवाज….. इन सब के बीच.. एक चीज है जो होती तो स्थिर है पर ... हमारी नज़र एक बार तो उस पर जाता ही है.... हां वह है ट्रेन के कोने मे लटकी वह चेन जो शांति से वही होती है... पर उसे देखकर एक जिज्ञासा होती है कि क्या यह चेन...इस भारी भरकम रेलगाड़ी को रोक सकता है....| क्या हो... अगर मैं इस चेन को एक बार खींच कर देखती.... जी हां बच्चे ही नहीं बल्कि बड़ों को भी यह काफी कैसेट उत्कंठित लगती है...| सभी की तरह मेरे मन में भी यह विचार आते थे पर उस रेल यात्रा के बाद यह उलझन... यह उत्सुकता सब समाप्त हो गई...|

गर्मियों के दिन थे, मैं छूटियाँ मनाने अपने परिवार के साथ उज्जैन गई थी| बड़ा मजा आया था । पर हम सब जब वहां से लौट रहे थे, रेल गाड़ी में बैठे ... ट्रेन खुलने मे अभी वक्त था और गर्मी भी बहुत थी। हमारे पास पानी ख़त्म हो चला था ... तो मेरे पति पानी भरने के लिए नीचे उतरे ....साथ में मेरा बेटा भी हो चला| मै और मेरी बेटी आराम से बैठकर पानी का इंतजार कर ही रहे थे कि अचानक रेलगाड़ी की सीटी की आवाज़ सुनाई दी और हमने सोचा किसी और रेलगाड़ी की सीटी की आवाज है..... पल भर में ही हमारी ट्रेन चलने लगी| हम घबरा गए मै भागकर गेट पर गई और बेटे को आवाज देने लगी .....उस भागम भाग में ..मेरी बेटी उसी कोच में चुपचाप खड़ी थी ...उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए उस वक्त किसी ने पीछे से आवाज दी ...." अरे कोई चेन पुलिंग कर दो "..... मेरी बेटी ने कुछ सोचे बिना चेन खींची.... रेलगाड़ी एका- एक रुक गई ....| मै तुरंत नीचे उतरी और चारों और अपने पति और बेटे को आवाज़ देने लगी| क्षण भर भी नहीं बीते थे कि वहां तीन-चार पुलिस वाले आ गए और चैन पुलिंग किसने की पुछने गया ...........? मैंने धीमे स्वर मे जवाब दिया " चेन पुलिंग मैंने किया है ".... गुस्से मे वे चेन पुलिंग का कारण पुछने लगे ? ....मै उन्हें बताने लगी कि मेरा बेटा स्टेशन पर ही छूट गया ...... तभी मेरे पति और बेटे आ गए जो की किसी और बौगी मे चढ़ गए थे और पूछने लगे कि क्या हुआ? पुलिस वाले ने गुस्से से कहा..." अरे जब पापा बच्चे के साथ थे.. तो आखिर चेन पुल करने की क्या जरूरत पड़ गई। " ऐसे करके वह मुझे डराने लगे कि....अब तो पुलिस स्टेशन में केस होगा ...., आपको यह ट्रेन छोड़कर थाने चलना होगा आदि.....कह कर डराने लगे ........... । यह सब देख शीट पर बैठी मेरी बेटी चुपचाप सोच रही थी..... उसे पता ही नहीं चल रहा था कि आगे क्या होगा..... ..... क्या माँ और पापा को पुलिस पकड़ कर ले जाएगी ?... यह बहस कोई 5- 10 मिनट हुई होगी , मेरे पति ने कहा हम फाइंड देने के लिए तैयार तो हैं पर वह पुलिस वाला तो सुन ही नहीं रहा था । बेवजह की बवाल को बढ़ता देख कर । अंत में मेरे पति ने ₹2000 का फाईन विनती करते हुए दिया और सब ठीक हो गया। पर रात में, मैं उसी बारे में सोचती रही उस रात को ऊपर सीट पर सोने पहुंची तो अपनी पुरानी आदत की तरह पास में लगे उस चेन पुलिग वाले बोर्ड को देखने और पढ़ने लगी| वैसे तो उसको मैं अपनी हर रेल यात्रा में पढ़ती थी....पर उस दिन लगा कि मैंने उसे कभी पढ़ा ही नहीं था | साफ-साफ अक्षरों में लिखा था " चेन पुलिंग का जुर्माना ₹2000"| हम सब जानते थे पर फिर भी पुलिस वाले हमें डरा रहे थे और हम उसके सामने गिड़गिड़ा रहे थे| उस वक्त लगा मानो हम पढ़े लिखे अनपढ़ थे । उस दिन के बाद ना मैंने उस बोर्ड को फिर पढ़ा और ना ही उस यात्रा को कभी भूल पाई और मैंने सोचा कि यह घटना मै आप सभी के साथ साझा करूँ । 

इस प्रकार मैं अपनी अंकल लगाए बगैर पुलिस वालों के सामने रिक्वेस्ट करके ₹2000 दिए । 

समस्या में भी घबराना नहीं चाहिए और अपनी सूझबूझ से काम लेनी चाहिए ।