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फागुन





फागुन 

इस फागुफागुन में

दिल दर्द के गुलाल से भर गया

जब भाई के हाथों भाई  कत्लेआम हो गया


जिगर में एक टीस सी उठ गई

जब राम और मुहम्मद के नाम पे

गलियां  बंट गई


अजान और घंटी में फासला तो सदियों से चलती आई

पर आज शारदा ने सलमा से क्यूँ नजरें निरस्त कर गई


इस रंगों के त्योहार में बेरंग दिखे जमाना

गले मिलने की बजाए पीठ दिखाये घराना ...


ये क्या और क्यूं हो गया

जरा कोई तो बताना ...




हिमाचल की वादिया




हिमाचल की वादिया

अनगिनत चीज़े सीखी मैंने यहां

पाया अपनी उम्मीद से बढ़कर यहां


खट्टी मीठी यादों का बसेरा है दिल में

कई सारे रिश्तों को संजोया है दिल में


खेला कूदा किया मस्ती हजार

हर दिन मनाया जैसे नया त्यौहार


सरसरी हवाएं वो आँधी-तूफान

ये ऊँची वादियां ये गगन चुम्बी पहाड़


और इन गगन चुम्बी पहाड़ियों पर

झिलमिलाती -सी बत्तियां


आशा जगाती, जुनून भर जाती

अद्भुत, अविस्मरणीय, याद दे जाती


थोड़ी सी मुश्किल मुझे ये राह होगी

तेरी जो आदत, मुझे वो छोड़नी होगी ।




हम और हिंदी




हम और हिंदी 

हिन्द और हिंदी का सम्मान करें हम

भारत की माटी हिंदी से प्यार करें हम

हिंदी का पूर्ण विकास हो 

 हिंदी कभी न उदास हो

संस्कृत की बेटी कहलाए हिंदी

मगध अवधी के संग हैं हिंदी

उर्दू अंग्रेजी है सखिया इसकी 

साहित्य में भी नाम बनाए हिंदी

डोर है हिंदी पतंगा है हम 

गुरू है हिंदी शिष्या है हम

सोच में हिंदी स्वप्न में हिंदी

परचम लहराए हिंदी का हम 

लेख में हिंदी सुलेख में हिंदी

राष्ट्र का है परिचय हिंदी

वंदनीय है पूजनीय है

संस्कार की जननी हिंदी

हिंदी से उत्थान हमारा

हिंदी को प्रणाम हमारा ... -2

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं🙏

प्रिय शिक्षक [कविता]- रचना सागर







प्रिय शिक्षक [कविता]- रचना सागर


विद्या का सार बताया
पशु और मनुष्य का फर्क समझाया
असभ्य और सभ्यता का मान बताया
आत्मसम्मान और घमंड का तर्क दिया
मन में, घर में, विद्यालय में,
समाज में और पूरे विश्व से
अज्ञानता का अंधकार मिटा
ज्ञान का दीप जलाया
प्रिय शिक्षक ,
आपको करूँ कर जोड़ प्रणाम
आपका बहुत बहुत आभार
जो जीवन का कर दिया उद्धार ..🙏🙏


आओ इस प्रकृति को हम बचाए [कविता]- रचना सागर

आओ इस प्रकृति को हम बचाए [कविता]- रचना सागर


सूरज का उगना सिखलाए
रोज नई शुरूआत कर जाए
ये विशाल पर्वत
हमें आसमान छूने की राह बताए
ये बृक्ष की तनी भुजाए
हर पल आगे बढ्ने को कह जाए
ये दिवार पर चिपकी छिपकली
समस्या मे स्थिर रहने को सिखाती
ये प्रकृति की छोटी छोटी चिंटियाँ
पूरे समय व्यस्त रहने को कहती
इन पंक्षियो का कोलाहल
हमेशा चहकते रहने का सन्केत दे जाए
अंकुरित बीज को तो देखो
क्षण-क्षण परिवर्तन में मुस्कुराने को कहता
मोर के सुंदर पंखो को तो देखो
मानो जीवन का हर रंग हो समाया
नदियो की धारा कह जाती
पथ जैसा भी हो आगे बढना है
ये समय हमें सिखलाता
ये आज जो है, कल नही मिल पाता
कितनी खुबसूरती से प्रभु ने
ये प्रकृति हमे सदा सीख देने को रची
आओ इस प्रकृति को हम बचाए
आओ इस प्रकृति को हम बचाए