माँ एक ऐसा शब्द जो अपने आप में सम्पूर्ण है । पर जाने अनजाने हम उसकी गरिमा को ठेस पहुंचा देते हैं । उसका दिल दुखा देते हैं । पर फिर भी वो अपने बच्चों के लिए अच्छा ही चाहती है। ऐसा सिर्फ एक माँ ही करती है माँ .."एक माँ की सच्चाई ...
"
एक माँ की सच्चाई ...[बाल कविता]: रचना सागर
मैंने देखा है
माँ को प्यार से मुझे सहलाते हुए
दुनिया से मुझ को छुपाते हुए
उदास होकर भी
दुनिया से मुझ को छुपाते हुए
उदास होकर भी
मेरे लिए मुस्कुराते हुए
मैंने देखा है
माँ को स्वयं पर गुस्सा करते हुए
अनकही सी
मैंने देखा है
माँ को स्वयं पर गुस्सा करते हुए
अनकही सी
आँखों से सब कुछ कहते हुए
न चाहकर भी डांट लगाते हुए
दुनिया के पहलू समझाते हुए
मैंने देखा है
माँ को खुद का श्रृंगार करते हुए
मेरी खुशी में खुश
मेरे गम में आँसू बहाते हुए
मैं समझ न पाई ... .
न पहचान पाई :
न चाहकर भी डांट लगाते हुए
दुनिया के पहलू समझाते हुए
मैंने देखा है
माँ को खुद का श्रृंगार करते हुए
मेरी खुशी में खुश
मेरे गम में आँसू बहाते हुए
मैं समझ न पाई ... .
न पहचान पाई :
उस माँ की कहानी
माँ की जुबानी
जब आज मैं स्वयं माँ बनी
समझ पाई जान पाई
माँ के पहलू को पर..
मैं आज भी जुबा से बयान
न कर पाई ... .
मैं आज भी जुबा से बयान
न कर पाई ... .
एक माँ की सच्चाई...
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