इंतजार [कविता]: रचना सागर
यूँ तो आपको मैं इक पल भी
भूली न थी
पर कभी -कभी आपके पास
आपकी बाँहो में सिमटने
का दिल करता है
कुछ कहने कुछ सुनने को
जी करता है
जो साथ होते है वो
इस विरह की आग को क्या जाने
पूछो उससे जो साथ रहकर
जुदा होते है
पूछो हम जैसों से जो
जुदा होते है
पूछो हम जैसों से जो
फर्ज के नाम पर बार बार
जुदा होते है
जुदा होते है
सब्र का फल मीठा होता है
ये सोच कर खुद को तसल्ली देते हैं
कभी भोगोये होगे हमारे माता पिता अपने कपड़े को
हमारे तन को सुखा रखने के लिए
कभी स्वयं को धूप मे रख
हमे छाया दी होगी
उनको आज जब हमारी जरूरत है
तो दूँगी कदम पर साथ उनका
फिर चाहे गुजर जाये पूरी जिन्दगी
इंतजार मे ....
मिलन की आस में...
कभी भोगोये होगे हमारे माता पिता अपने कपड़े को
हमारे तन को सुखा रखने के लिए
कभी स्वयं को धूप मे रख
हमे छाया दी होगी
उनको आज जब हमारी जरूरत है
तो दूँगी कदम पर साथ उनका
फिर चाहे गुजर जाये पूरी जिन्दगी
इंतजार मे ....
मिलन की आस में...
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