अभिनन्दन [कविता]- रचना सागर
तिरंगे के लिए जो जान हुई कुर्बान
अरे! उनका तो मान रखा करो
तू -तू , मैं - मैं करके
यूँ भारत के टुकड़े न किया करो
पीठ - पीछे नोकता चीनी करके
अपने देश को न बदनाम किया करो
तिरंगे के लिए जो जान हुई कुर्बान ...
अरे ! उनका तो मान रखा करो ।
आज के युवा, पाये है अवसर जो तुमने हजारों लाखों
उनको न ट्वीटर ... पर बर्बाद किया करो
पढ़ो - लिखो, विज्ञान ,कला खेलो में भी नाम बनाओ
भारत को दुनिया में शीर्ष स्थान दिलाओ
माँ -बाप की भाँति देश भी तुम से आस लगाए बैठा है
उठो जागो कि इतिहास बदल डालो
ये देश तुम्हारे अभिनन्दन को थाल सजाएं बैठा है
तिरंगे के लिए जो जान हुई कुर्बान
अरे!उनका तो मान रखा करो ।
तिरंगे के लिए जो जान हुई कुर्बान
अरे! उनका तो मान रखा करो
तू -तू , मैं - मैं करके
यूँ भारत के टुकड़े न किया करो
पीठ - पीछे नोकता चीनी करके
अपने देश को न बदनाम किया करो
तिरंगे के लिए जो जान हुई कुर्बान ...
अरे ! उनका तो मान रखा करो ।
आज के युवा, पाये है अवसर जो तुमने हजारों लाखों
उनको न ट्वीटर ... पर बर्बाद किया करो
पढ़ो - लिखो, विज्ञान ,कला खेलो में भी नाम बनाओ
भारत को दुनिया में शीर्ष स्थान दिलाओ
माँ -बाप की भाँति देश भी तुम से आस लगाए बैठा है
उठो जागो कि इतिहास बदल डालो
ये देश तुम्हारे अभिनन्दन को थाल सजाएं बैठा है
तिरंगे के लिए जो जान हुई कुर्बान
अरे!उनका तो मान रखा करो ।