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भाई दूज [कविता]- रचना सागर



रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।
भाई दूज [कविता]- रचना सागर


दीपावली आई, भाई दूज की बधाई|
आया कोरोना काल है,
सबके मुंह पर मास्क है,
दुकानें भी खूब सजी हैं,
रंग बिरंगी मिठाईयाँ भी खूब लगी हैं,
दीपावली आई भाई दूज की बधाई|

भाई दूज पर दूं मैं आपको क्या उपहार,
भाई बहन का प्यार बना रहे,
मांगू मैं ईश्वर से हर बार,
दीपावली आई, भाई दूज की बधाई|

मैं डंडा हूँ - [कविता] रचना सागर



मैं डंडा हूँ

रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।

महात्मा गांधी जी का डंडा हूँ

हर दम साथ रहता हूँ 

 हरदम काम  आया हूँ 

मैं  डंडा हूँ

 गांधी जी का डंडा हूँ

 हरदम धूम मचाया हूँ

 दांडी मार्च कर दिखाया हूँ

 नमक आंदोलन हो या सत्याग्रह

सब समय  काम आया हूँ

मैं  डंडा हूँ

 गांधी जी का डंडा हूँ

 अंग्रेजों को दूर भगाया हूँ 

 पूरे भारत में

 आजादी का झंडा लहराया हूँ 

मैं  डंडा हूँ

 महात्मा गांधी जी का डंडा हूँ


 

बाल दिवस [कविता]- रचना सागर



आया है बाल दिवस का त्योहार

रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।

 चाचा नेहरू लेकर आए सबके लिए उपहार

 मुन्नू को मिली कार

 चुन्नू के लिए मोटर कार

 डिंपी के ले आया गुड़ियों का संसार

  सिम्मी के लिए है रोबोट तैयार 

आया है बाल दिवस का त्योहार

 चाचा नेहरू लेकर आए सबके लिए उपहार

 रिमी के लिए रसमलाई आई

 गोलू के लिए तो सजी है सारी मिठाई

 मुंह फुलाए नैना  भी आई

 उसके लिए क्या है विशेष भाई

आया है बाल दिवस का त्योहार

 चाचा नेहरू लेकर आए सबके लिए उपहार

 हम  चलती नहीं चाबी वाले

 गुड़िया ,मोटर, रेलगाड़ी ,भालू और बंदर

  बटन  दबाने भर से चलता है

 सारा  इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम

आया है बाल दिवस का त्योहार

 चाचा नेहरू लेकर आए सबके लिए उपहार

अंतर्मन को जिंदा रखो

 सच्चाई अपनाओ

 देश के लिए तुम सदा जीना

 देश के  खाते जान गवाओ

आया है बाल दिवस का त्योहार

 चाचा नेहरू लेकर आए सबके लिए उपहार


सतर्क भारत हमारा गर्व [कविता ] - रचना सागर



आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे


अब तक  हम हर  वर्ष सतर्कता 

 पर चर्चा करते आए हैं

अपनी आकांक्षाओं के अधीन हो 

एक दूसरे पर उंगलियां उठाते आए हैं

 अपनी गलती को छोटा बताने को

 दूसरों की गलतियां  गिनाते आए हैं


  आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे



 जब जान लिया है विष कहां है?

फिर दौड़ भाग क्यों यहां वहां है

 यह बीमारी है शुगर बीपी जैसी

 जीवन भर साथ चलेगी और पीढी दर पीढ़ी बटेगी 


आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे



लक्ष्मी, दुर्गा, काली, चंडी की पूजा करते है

फिर रिश्वत पर हम क्यों पलते है 

काला धन को प्रभु की कृपा समझते है 

हर बात पर राजनीति करते है

औरत की आबरू हरने हो तत्पर रहते है


आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे



दस दस रुपये में बिकते ईमान है 

फिर भी हर कोई परेशान है

रोटी, रोटी- दाल की कमी नहीं है

पर गरज किसी की पूरी नही है


आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे


करते है गलती जलती है चिताएँ 

उठती है टीसें बहती है आशाएं

उस पे हम मोमबत्तियां जलाएं 

ये कहाँ की अराजकता है, ये कैसी बलाए


आज अपने स्तर से सतर्कता लाएंगे

 तो कल समृद्ध भारत बना पाएंगे


भद्दे चुटकुले और परिहास कर अपनी परंपरा नष्ट करते आए है

फिर बची  है जो सभ्यता उसका भी मान ना कर पाए हैं

गांधी, भगत, लक्ष्मीबाई का उदाहरण देते आए हैं 

फिर क्या है- फिर क्या है जो हमें स्तंभित कर उनका मान क्षीण कर  आए हैं 


इतिहास गवाह है कि जब- जब इंसानों ने कुछ करने की ठानी  है 

तो एक उदाहरण पेश कर डाला है 

तो चलिए अपने भविष्य के लिए कुछ कर जाएं

छोटी छोटी गलती को हम ना छुपाए 

देखें जो गलत तो आवाज उठाएं 

सूझ- बूझ और सावधानी अपनाएं 

बड़े और छोटे का भेद मिटाएं 

प्यार से सबको गले लगाएं 

धर्म जाति का भेद दूर कर 

इस बार शिक्षा, बुद्धि, विवेक और शुद्ध आचरण का दीप जलाएं 

बेटों को ज्ञान दें ताकि हर स्त्री को सम्मान दें 

बेटियां हर मां बाप के  गुलशन का गुल है 

सुरभि बन संसार में छा जाने दें 

इतना सुंदर तो है भारत का पौराणिक ज्ञान 

फिर क्यों है इनमें  (youth) इतना आक्रोश, अज्ञान, 

इन्हें बताएं भारत का दंभ है ,

भारत का गर्व हैं 

भारत किसी से कम नहीं है 

हम भारत हैं भारत हैं हम 

तो चलिए मित्रों आज अपने स्तर पर सतर्कता लाएं 

ताकि कल फिर से भारत में सतर्कता सप्ताह ना मनाया जाए

सतर्कता सप्ताह ना मनाया जाए 


रचना सागर

29.10.2020




मुस्कुराओ जी [कविता] -रचना सागर



सौ साल बाद आई कहर है

 यह महामारी नहीं सबक की लहर है

 अपनी ही धुन में हम  यू रम गए हैं

 आए क्या करने और क्या कर रहे हैं

 खुद ही खुद के गुलाम बन गए हैं

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 कभी किसी का मजाक मत उड़ाओ जी


 कहीं अम्फाल  तो कहीं तूफान है

 कहीं बाढ़ से लोग बेहाल है

 चारों तरफ डर और खौफ का माहौल है

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 प्रभु का धन्यवाद करते जाओ जी

 

संकट की घड़ी आई है

 नहीं कोई सुनवाई है

 प्रकृति ने भी बेरुखी दिखाई है

 हर तरफ बदहवासी छाई है

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 राम का नाम जपते जाओ जी


 ग्रहण लगा  सूर्य चांद पर है

 इनकी रोशनी   मधुआई है 

मंदिर मस्जिद गिरजाघर की राहे बंद है

चहू ओर संघर्ष की ये अजब द्वंद है 

फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 नित्य नित्य   सत्कर्म करते जाओ जी 


 नदिया झर झर  बहती जाती है

 प्रकृति सुंदर राग सुनाती है

 सब कुछ तो पहले जैसा है

 बस हम- तुम ,तुम -हम बदले कैसे  हैं

 हर हाल में खुश रहने की जिद में

 खुश रहना ही भूल गए हैं

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी

 पग पग पर    संभलते जाओ जी

 नारायण नारायण कहते जाओ जी

 सकारात्मकता फैलाओ जी

 फिर भी आप मुस्कुराओ जी


भारत की गौरव गाथा [कविता]- रचना सागर

रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।
भारत की गौरव गाथा [कविता]- रचना सागर


सोच रही हूं बैठे बैठे
कोई गीत गुनगुनाऊ
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं
तनी थी तलवार जब
हुआ था घमासान गजब
कुछ कर गए कुछ मर गए
वह इंकलाब का जोश हम में भर गए
आजादी के नाम पर मर गए वह मिट गए हैं
आज वो मरने वालों की साख कहां से लाऊं
जो बात छिपी थी उन गाथाओं में
वो बात कहां से लाऊं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं

जहां मंदिरों की घंटियों से भगवान जाग जाते हैं
अजान की आवाज से शैतान भाग जाते हैं
सिखों के गुरबाणी का विश्वास
तेरे मेरे के बीच होली ईद का त्यौहार
यह भाई चारा का भाव कहां से लाऊं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं


दादी का प्यार दादू का दुलार
हंसते हंसते रोने का व्यवहार
ये बात बात पर रोके हर बार
उस रूप टो के पीछे छिपा है प्यार
वह प्यार कहां से लाऊं मैं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं

जहां जीत में भी आंसू छलकाए
और हार का भी जश्न मनाए
जो ले जाए बच्चों की सारी बलाएं
वह मां की ममता से में बँधा
ख्याल कहां से लाऊं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं

बारिश की वह सोंधी खुशबू
रक्षाबंधन पर भाई बहन का प्यार
वह स्नेह के धागे में बंधा प्यार कहाँ से लाऊं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं

परियों और भूत प्रेत के किस्से
टोना टोटका भी खूब यहां
अंधविश्वास भरता है पेट यहां
फिर भी हम पाते हैं विज्ञान की शिक्षा जहां
वह अंधविश्वास और विज्ञान का मेल कहां से लाऊं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं


जहां पहलवान भी मिट्टी मल-मल के
अपने जंगल में मंगल करते हैं
मिट्टी का जो है असर यहां
वह मिट्टी का चमक कहां से लाऊं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं

खेलों में भी आगे बढ़कर
तिरंगा अपना लहराया है
मुश्किलों से लड़कर मेडल कमाया है
भारत की शान है करते यह कमाल है
इन कमाल को करने का हौसला कहां से लाऊं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं

पति पत्नी सातो जन्मों की कसमें खा कर
सोते जगते यह लड़ते हैं
रेल की पटरी की भांति हरदम
संघ में रहते हैं
पति पत्नी का यह
प्यार भरा तकरार कहां से लाऊं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं

क, का, कि, की, च, चा, चि, ची
सुस्पष्ट स्वर्णिम सुंदर उपवन
शुद्ध हिंदी के उच्चारण का
वह पाठ कहां से लाऊं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं


अंग्रेजी माना तू यूनिवर्सल है
और बड़े ही तुझ में कौशल है
पर जिसमें भारत का नाम ना हो
वह पहचान है किस काम का
भूल गए जो संस्कार हम
तो पहचान कहां से लाऊं
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं

भारत की गौरव गाथा
सोच रही हूं बैठे बैठे
कोई गीत गुनगुनाऊ
भारत की गौरव गरिमा की बात करूं या
चुप सी मैं रह जाऊं

इन्सान हो इंसान तुम[कविता]- रचना सागर


उसको क्या पता था

इंसान उसे भूल जाएगा

गुनाहों में पड़ के वो

क्या कर जायेगा

खाली हाथ आया था वो

गुनाहों संग जायेगा

लिया-दिया- सब किया

यही रह जाएगा

उसको क्या पता था...

हिंसा बस हिंसा है

तेरे और मेरे मन में

प्यार कहाँ है?

ढूढ़ो तो ढूढ़ो/जानो तुम

उसको क्या पता था...

मारो और काटो तुम

यही कर पाए हो

इंसान हो इंसान तुम

नहीं बन पाए हो

उसको क्या पता था...

नफरत है तेरे अन्दर नफरत फैलाएं हो

मज़हब के नाम पर घर लूट खांए हो

सोचो तो जरा सोचो तुम

क्या मुहम्मद बन पाएं हो?

उसके ही नाम पर लूट मचाए हो

इन्सान हो इंसान तुम नहीं बन पाए हो?

रचना सागर

29.06.2010

5:30 PM