रचनाकार परिचय:-
क्या औरत कभी कामयाब हो पाती है...? [कविता]- रचना सागर
रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।
जब भी कामयाबी की ओर वो कदम बढ़ाती है
कभी बर्तन ..... कभी बच्चे तो
कभी छुरी, चाकू से वो टकराती है
मंजिल को देखने से पहले वो
बच्चों के सपनों पर नजर दौड़ाती है
भले की वो सपने उसके नहीं हैं
फिर भी वो पूरा ज़ोर लगाती है
जब भी कामयाबी की ओर वो कदम बढ़ाती है
कभी बच्चो की, तो कभी घर की सुरक्षा से वो टकराती है
जरूरतों की लिस्ट को वह फ्रिज पर टंगी पाती है
लौंड्री बास्केट घर के कोने से उसे बुलाती है
प्रेस की तार से वो खुद को ज़ुदा नहीं कर पाती है
जब भी कामयाबी की ओर वो कदम बढ़ाती है
दो पैसों के लिए वो खुद को मोहताज पाती है
बजत की गुल्लक से वो नजरें चुराती है
इच्छाओ के पंख को वो खोल नहीं पाती है
जो बच्चों के रोज़ नाज-नख़रे उठाती है
आज वो job पा भी जाती है
तो समाज उसपर ऊंगली उठाती है
लाख मशक्कतों के बावजूद.....
जब भी कामयाबी की ओर वो कदम बढ़ाती है
तो भी क्या औरत कभी कामयाब हो पाती है ...????
2 comments:
Beautiful poem anti ji , very good combination between home things with a woman life , excellent thought .
Thank you so much ji
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