ज़िन्दगी एक सफर है
खुश हो रहे हैं हम
दो वक्त की रोटी पा कर
और अपने ठहराव को मंज़िल समझ बैठे
हम तुम ने सफर को ही मंज़िल कह लिया है
जब आती है किसी की मौत तो कहते हैं
मंज़िल आ गयी
ज़िन्दगी महज झांकी है
हमारी मंज़िल अभी बाकी है...
- रचना सागर
खुश हो रहे हैं हम
दो वक्त की रोटी पा कर
और अपने ठहराव को मंज़िल समझ बैठे
हम तुम ने सफर को ही मंज़िल कह लिया है
जब आती है किसी की मौत तो कहते हैं
मंज़िल आ गयी
ज़िन्दगी महज झांकी है
हमारी मंज़िल अभी बाकी है...
- रचना सागर
07.07.07
6 comments:
चित्र और कविता दोनो अच्छे हैं।
वाह, बहुत खूब. स्वागत है.
jindgi kai barai me bhut achi kavita likhi hai. keep it up.
You show the reality of life. Very good you understand the fact of life at very early stage. It is so touching.
Indu Wadhwa
very philosophical poem.. Rachnaji aapki ander ki geheraayi ka andaja hota hai iss kavita ko ped ker... very gud
रचना की रचना रुची, शब्द चित्र जीवंत.
गागर में सागर भरा, है रस-धार अनंत.
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