फागुन
इस फागुफागुन में
दिल दर्द के गुलाल से भर गया
जब भाई के हाथों भाई कत्लेआम हो गया
जिगर में एक टीस सी उठ गई
जब राम और मुहम्मद के नाम पे
गलियां बंट गई
अजान और घंटी में फासला तो सदियों से चलती आई
पर आज शारदा ने सलमा से क्यूँ नजरें निरस्त कर गई
इस रंगों के त्योहार में बेरंग दिखे जमाना
गले मिलने की बजाए पीठ दिखाये घराना ...
ये क्या और क्यूं हो गया
जरा कोई तो बताना ...