अभी समय है...

आज उस वृक्ष को कटते देखा मैंने
जिसे रोपा था बूढी अम्मा ने
सींचा था अपने श्रम से, स्वेद से
पाला था बेटे की भांति
कल का नन्हा पादप
आज जब विशाल वृक्ष बना था
तो काट दिया अम्मा के अपने बेटे नें
मानो, एक भाई ने दुसरे भाई को काट दिया..

आज उस वृक्ष को कटते देखा मैंने
जिसे रोपा था बूढी अम्मा ने
वह वृक्ष उदास तो था
किंतु उसकी आँखों मे आँसू न थे
वो आज के मानव की कहानी कह रहे थे
उसे अफसोस नहीं कट जाने का/मिट जाने का
कि यही तो आज की दुनियाँ है हाँ
यहाँ माँ के दुध का कर्ज अदा नही होता
धरती माँ का हक़ अदा नही होता
जहाँ संग खेलते भाई-बहनों का संग नही होता
वहाँ एक अदना वृक्ष की क्या बिसात?
जाता हुआ वृक्ष धरती में बिबाईया बो गया
दरारे अपनी लिपि में
दे रही थी चेतावनी मानवता को
अभी समय है संभल जाओ..

- रचना सागर
27.12.2007